कुक्कुट पालन : एक लाभकारी व्ययसाय
डॉ रमेश पाण्डेय,
एसोशिएट प्रोफेसर ,पशुपालन विभाग,
इलाहाबाद कृषि संस्थान – मान्य
विश्वविद्यालय, नैनी, इलाहाबाद
कुक्कुट
पालन एक लाभकारी व्यवसाय क्यों और कैसे ?
Ø कुक्कुट पालन भूमिहीन ,सीमान्त किसानों
तथा बेरोजगार नौजवानों को स्वरोजगार उपलब्ध कराने का एक प्रभावी साधन है ।
Ø कुक्कट व्यवसाय लगातार ८-१० प्रतिशत
वार्षिक वृद्धि की दर से बढ़ रहा है जबकि दूध व्यवसाय की वार्षिक वृद्धि दर ४-५
प्रतिशत अनुमानित है ।
Ø कुछ प्रबुद्ध शाकाहारियों द्वारा अनिषेचित
अंडे को शाकाहार के रूप में स्वीकार किये
जाने से अंडे की माँग में राष्ट्रीय स्तर पर वृद्धि हुई है ।
Ø इस व्यवसाय में कम कीमत पर अधिक खाद्य
पदार्थ प्राप्त होता है । उदाहरण
के रूप में ब्रायलर मुर्गे का एक किग्रा शरीर भार २ किग्रा दाना मिश्रण खिला कर
प्राप्त किया जा सकता है । इसी
प्रकार मुर्गी से एक दर्जन अंडे पाने के लिये उसे
सिर्फ़ २.२ किग्रा दाना मिश्रण ही
खिलाना जरूरी होता है ।
Ø मुर्गी की खाद्य परिवर्तन क्षमता गाय और
सूअर की तुलना में भी बहुत बेहतर होती है ।
Ø गाय एक किग्रा खाद्य पदार्थ उत्पादन के
लिये ५ किग्रा दाना मिश्रण तथा सूअर एक
किग्रा मांस उत्पादन के लिये ३ किग्रा दाना मिश्रण का उपयोग करता है जबकि मुर्गी
सिर्फ़ दो किग्रा दाना खा कर एक किग्रा शरीर भार पा लेती है ।
Ø मुर्गी के माँस के विक्रय में किसी भी
प्रकार की धार्मिक मान्यता बाधक नहीं बनती है. साथ ही साथ मुर्गी के माँस तथा अंडे
के लिये अपने प्रदेश तथा पूरे देश में भलीभाँति
विकसित बाजार मौजूद है ।
Ø मुर्गी की बीट तथा बिछावन से बनाई गयी खाद
में , गाय के गोबर की खाद की तुलना में अधिक मात्रा में नत्रजन, फास्फोरस तथा
पोटाश पाया जाने के कारण इसकी कार्बनिक खेती के लिये बहुत माँग रहती है ।
Ø मुर्गी की सुखाई हुई बीट को निर्जमीकृत
करने के बाद पशु आहार बंनाने में भी प्रयोग किया जाता है ।
Ø मुर्गी के अंडे के अंड पीत को वीर्य
तानुकारक बनाने में भी प्रयोग किया जाता है ।
Ø मुर्गी का व्यवसाय एक ऐसा अनूठा धंधा है जिसमें
बहुत ही जल्दी आपकी पूँजी बढोत्तरी के साथ आपको वापस मिल जाती है । ब्रायलर मुर्गे से सिर्फ़ ४ सप्ताह में आप
एक किग्रा वजन पा सकते हैं । इसी
प्रकार मुर्गी से अंडा उत्पादन प्राप्त करने के लिये लगभग ४.५ महीने का समय
पर्याप्त होता है ।इस
प्रकार पूँजी को लाभ सहित वापस पाने के बाद उसे फिर से इस व्यवसाय में लगाने से
अगली बार और अधिक पूंजीगत लाभ की प्राप्ति सम्भव हो पाती है ।
Ø मुर्गीपालन में तुलनात्मक रूप से कम
पूँजी, कम स्थान तथा कम श्रम शक्ति की जरूरत पडती है ।
Ø मुर्गी के व्यवसाय से सारे साल नियमित रूप
से आय प्राप्ति सम्भव है ।
Ø मुर्गी पालन के धंधे का विस्तार भी बहुत
आसान है क्योंकि एक अच्छी नस्ल की उन्नत मुर्गी साल भार में २५० से अधिक निषेचित
अंडे देने की क्षमता रखती है ।
Ø यदि वैज्ञानिक तरीके अपनाते हुए तथा
नियमित रूप से टीकाकरण करने के साथ
मुर्गीपालन किया जाये तो इस व्यवसाय में जोखिम भी बहुत कम रहता है ।
Ø मुर्गीपालन को स्वरोजगार के रूप में
बेरोजगार नौजवान, गृहणी तथा सेवानिवृत्त कर्मचारी, भी सहजता से अपना कर एक अतिरिक्त
आय का स्रोत बना सकते हैं ।
मुर्गी पालन में ध्यान देने
योग्य बातें
1.
ब्रायलर के
चूजे की खरीदारी में ध्यान दें कि जो चूजे आप खरीद रहें हैं उनका वजन 6 सप्ताह में 3 किग्रा दाना खाने के बाद कम से कम 1.5 किग्रा हो जाये तथा मृत्यु दर 3 प्रतिशत से अधिक न हो ।
2.
यदि अंडे
वाली मुर्गी अर्थात लेयर के चूजे हों तो उन्हें हैचरी से ही रानीखेत एफ का टीका
तथा पहले दिन ही मेरेक्स का टीका लगा होना चाहिये ।व्हाइट लेग हार्न के मादा चूजे
८ सप्ताह में लगभग १/२ किग्रा भार के हो जाने
चाहिये।
3.
चूजे की खरीद के लिये सदैव अच्छी तथा प्रमाणित हैचरी का चूजा खरीदना ही अच्छा होता है ।
4.
चूजे के आते ही उसे बक्से समेत कमरे के अन्दर ले जायें, जहाँ ब्रूडर रखा हो । फिर बक्से का ढक्कन खोल दें।
अब एक एक करके सारे चूजों को ओ आर एस पाउडर या ग्लूकोज मिला पानी पिला कर ब्रूडर
के नीच छोड़ते जायें। बक्से में अगर बीमार
चूजा है तो उसे हटा दें।
5.
चूजों के
जीवन के लिए पहला तथा दूसरा सप्ताह संकट का होता है । इस लिए इन दिनों में अधिक देखभाल की
आवश्यकता होती है। अच्छी देखभाल से मृत्यु दर कम की जा सकती है।
6.
पहले सप्ताह में ब्रूडर में तापमान 90०F होना चाहिए। प्रत्येक सप्ताह 5 0 F कम करते
हुए इसे 70० F से नीचे ले जाना चाहिए। यदि चूजे ब्रूडर के नीचे
बल्ब के नजदीक एक साथ जमा हो जायें । तो समझना चाहिए के ब्रूडर में तापमान कम हैं।
तापमान बढ़ाने के लिए अतिरिक्त बल्ब का इन्तजाम करें या जो बल्ब ब्रूडर में लगा है, उसको थोडा नीचे करके देखें। यदि चूजे बल्ब से काफी
दूर किनारे में जाकर जमा हो तो समझना चाहिए ब्रूडर में तापमान ज्यादा हैं। ऐसी
स्थिति में तापमान कम करें। इसके लिए बल्ब को ऊपर खींचे या बल्ब की संख्या को कम
करें। उपयुक्त गरमी मिलने पर चूजे ब्रूडर के चारों तरफ फैल जायेंगे । वास्तव में
चूजों के चाल चलन पर नजर रख और समझकर ही तापमान
को नियंत्रित करें।
7.
पहले दिन
जो पानी पीने के लिए चूजे को दें, उसमें ओ आर
एस पाउडर या ग्लूकोज मिलायें। इसके अलावा 5 मि.ली. विटामिन ए., डी.३ एवं बी.12 तथा 20 मि.ली. बी काम्प्लेक्स प्रति 100 चूजों के हिसाब से दें। ओ आर एस पावडर या ग्लूकोज
दूसरे दिन से बन्द कर दें। बाकी दवा सात दिनों तक दें । वैसे बी- काम्प्लेक्स या
कैल्सियम युक्त दवा 10 मि.ली.
प्रति 100 मुर्गियों के हिसाव से हमेशा
दे सकते हैं।
8.
जब चूजे
पानी पी लें तो उसके 5-6 घंटे बाद अखबार पर मकई का
दर्रा छीट दें,चूजे इसे खाना शुरु कर देंगे
। इस दर्रे को 12 घंटे तक खाने के लिए देना
चाहिए।
9.
तीसरे दिन से फीडर में प्री-स्टार्टर दाना दें। दाना
फीडर में देने के साथ – साथ अखबार पर भी छीटें। प्री-स्टार्टर दाना 7 दिनों तक दें। चौथे या पाँचवें दिन से दाना केवल
फीडर में ही दें। अखबार पर न छीटें।
10.
आठवें रोज
से 28 दिन तक ब्रायलर को स्टार्टर
दाना दें। 29 से 42 दिन या बेचने तक फिनिशर दाना खिलायें। अंडा देने
वाले बच्चों को अच्छा स्टार्टर दाना दें।
11.
दाना कभी
भी बेकार न होने दें ।
12.
दूसरे दिन से पाँच दिन के लिए कोई एन्टीबायोटिक दवा
पशुचिकित्सक से पूछकर आधा ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर दें। ताकि चूजों को
बीमारियों से बचाया जा सके।
13.
शुरु के
दिनों में बिछाली (लिटर) को रोजाना साफ करें। पानी का बर्तन रखने की जगह हमेशा
बदलते रहें।
14.
चूजों की
अच्छी बढ़त के लिये स्वच्छ हवा का होना जरूरी है रात में भी रोशनदान को पूरा न
ढंकें।पर ध्यान दें कि चूजों को सीधी हवा नहीं लगानी चाहिये ।
15.
बिछावन सदा
सूखी और भुरभुरी रहे । बुरादे के सीलन वाले या गीले हिस्से को तुरंत हटा दें ।
16.
पाँचवें या
छठे दिन ब्रायलर चूजों को रानीखेत एफ का टीका आँख तथा नाक में एक –एक बूँद दें।
17.
14 वें या 15 वें दिन गम्बोरो का टीका, आई.बी.डी. आँख तथा नाक में एक –एक बूँद दें।
18.
मरे हुए चूजे को कमरे से तुरन्त बाहर निकाल दें।
नजदीक के अस्पताल या पशुचिकित्सक से पोस्टमार्टम करा लें। पोस्टमार्टम कराने से यह
मालूम हो जायेगा की मौत किस बीमारी या कारण से हई है।
19.
अंडे वाली
मुर्गियों के पालने अथवा रियरिंग का समय ब्रूडिंग समाप्त होने के बाद ९-२० सप्ताह
तक बहुत खास होता है । ८ सप्ताह की उम्र पर मुर्गे, मुर्गियों के लिंग की जांच कर
के गलती से आ गए नर मुर्गों को अलग कर देना चाहिये । मुर्गियों को इस समय प्रति
मुर्गी १.५ - २ वर्ग फुट स्थान की जरूरत
होती है।इसी प्रकार इनके पानी पीने और दाना खाने वाले बर्तनों का अकार भी बढ़ जाता
है । ९-२० सप्ताह की उम्र वाली मुर्गियों को रात में बिलकुल रोशनी नहीं देनी
चाहिये। पर रोशनी को धीरे धीरे कम करते हुए एक हफ्ते में बंद करना चाहिये। व्हाइट
लेग हार्न मुर्गियों का एक चूजा एक दिन से २० सप्ताह की अवधि में ७.५ – ८ किग्रा
दाना खाता है।
20.
ब्रूडिंग
और रियरिंग के बाद मुर्गियाँ २० सप्ताह से ७२ हफ़्तों पर अंडे पर आ जाती हैं। इस
समय प्रति व्हाइट लेग हार्न मुर्गी २-२.५ वर्ग फुट स्थान की जरूरत होती है। इसी
प्रकार उनकी अन्य जरूरतें भी अब बढ़ जाती हैं। इस समय से अब पुनः रोशनी की मात्रा
धीरे धीरे ७-१० दिनों में वापस ले आयें। यह ध्यान दें कि लाइट निश्चित समय पर ही
जलाएं या बुझायें। अण्डों को निश्चित समय पर ही
दिन में ३-४ बार इकट्ठा करें । अंडा देने की एक वर्ष की अवधि के दौरान मृत्यु दर हर हाल में १५ % से कम ही रहनी
चाहिये ।
21.
मुर्गी घर
के दरवाजे पर एक बर्त्तन या नाद में फिनाइल का पानी रखें। मुर्गीघर में जाते या
आते समय पैर धो लें। यह पानी रोज बदल दें।
No comments:
Post a Comment