Saturday 16 February 2013

ग्रीष्मकाल में नवजात एवं दुधारू पशुओं की देखभाल -डॉ रमेश पाण्डेय,




ग्रीष्मकाल में नवजात एवं दुधारू पशुओं की देखभाल
                                 डॉ रमेश पाण्डेय,
                        एसोशिएट प्रोफेसर ,पशुपालन विभाग,
                 इलाहाबाद कृषि संस्थान – मान्य विश्वविद्यालय, नैनी, इलाहाबाद

ग्रीष्मकाल में नवजात पशुओं एवं दुधारू पशुओं की देखभाल का औचित्य :
बेहद गर्म मौसम में , जब वातावरण का तापमान ‍ 42-48 °c तक पहुँच जाता है और गर्म लू  के थपेड़े चलने लगतें हैं तो पशु दबाव की स्थिति में आ जाते हैं। इस दबाव की स्थिति का पशुओं की पाचन प्रणाली  और दूध उत्पादन क्षमता पर उल्टा प्रभाव पड़ता है।  इस मौसम में नवजात पशुओं की देखभाल में अपनायी गयी तनिक सी भी असावधानी उनकी भविष्य की शारीरिक वृद्धि , स्वास्थ्य ,  रोग प्रतिरोधी  क्षमता और  उत्पादन क्षमता  पर स्थायी कुप्रभाव डाल सकती है । गर्मी के मौसम में ध्यान न देने पर पशु के सूखा  चारा खाने की मात्रा में १०-३० प्रतिशत  और दूध उत्पादन क्षमता में  १० प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। साथ ही साथ अधिक गर्मी के कारण पैदा हुए आक्सीकरण तनाव की वजह से पशुओं की बीमारियों से लड़नें की अंदरूनी क्षमता पर बुरा असर पडता है और आगे आने वाले बरसात के मौसम में वे विभिन्न बीमारियों के शिकार हो जाते हैं ।




ग्रीष्मकाल में नवजात पशुओं की देखभाल के उपाय :
Ø सीधे  तेज धूप और लू से नवजात पशुओं को बचाने के लिए नवजात पशुओं को रखे जाने वाले पशु आवास  के सामने की ओर खस या जूट के बोरे का पर्दा लटका देना चाहिये
Ø नवजात बच्चे के जन्म के तुरंत बाद उसकी नाक और मुँह से सारा म्यूकस
अर्थात लेझा बेझा बाहर निकाल देना चहिये । यदि बच्चे को साँस  लेने में अधिक दिक्कत हो तो उसके मुँह से मुँह लगा कर श्वसन प्रक्रिया को ठीक से काम करने देने में सहायता  पहुँचानी चहिये ।
Ø नवजात बछड़े का नाभि उपचार करने के तहत उसकी नाभिनाल को शरीर से आधा इंच छोड़ कर  साफ़ धागे से कस कर बांध देना चहिये। बंधे स्थान के ठीक नीचे नाभिनाल को स्प्रिट से साफ करने के बाद नये और स्प्रिट की मदद से कीटाणु रहित किये हुए ब्लेड की मदद से काट देना चहिये । कटे हुए स्थान पर खून बहना रोकने के लिए टिंक्चर आयोडीन दवा लगा देनी चहिये ।
Ø नवजात बछड़े को जन्म के आधे घंटे के भीतर माँ के  अयन का  पहला स्राव  जिसे खीस कहते हैं पिलाना बेहद जरूरी होता है । यह खीस बच्चे के भीतर बीमारियों से लड़ने की  क्षमता के विकास और पहली टट्टी के निष्कासन में मदद करता है ।
Ø कभी यदि दुर्भाग्यवश बच्चे की माँ की जन्म देने के बाद मृत्यु हो जाती है तो कृत्रिम खीस का प्रयोग भी किया जा सकता है । इसे बनाने के लिए एक अंडे को भलीभाँति फेंटने के बाद ३०० मिलीलीटर पानी में मिला देते हैं । इस मिश्रण में १/२ छोटा चम्मच रेंडी का तेल और ६०० मिलीलीटर सम्पूर्ण दूध मिला देते हैं ।इस मिश्रण को एक दिन में  ३ बार की दर से ३-४  दिनों तक
पिलाना चहिये ।
Ø इसके बाद यदि संभव हो तो नवजात बछड़े/ बछिया का वजन तथा नाप जोख कर लें  और साथ  ही यह भी ध्यान दें कि कहीं बच्चे में कोई असामान्यता तो नहीं है । इसके बाद बछड़े/ बछिया के कान में उसकी पहचान का नंबर डाल दें ।
गर्मी के बुरे असर से दुधारू पशुओं को बचाने हेतु महत्वपूर्ण उपाय :
Ø सीधे  तेज धूप और लू से पशुओं को बचाने के लिए पशुशाला के मुख्य द्वार पर खस या जूट के बोरे का पर्दा लगाना चाहिये
Ø सहन के आस पास छायादार वृक्षों की मौजूदगी पशुशाला के तापमान को कम रखने में सहायक होती है ।
Ø पशुओं को छायादार स्थान पर बाँधना चाहिये
Ø पर्याप्त मात्रा में साफ सुथरा ताजा पीने का पानी  हमेशा उपलब्ध होना चहिये
·        पीने के पानी को छाया में रखना चाहिये
·        पशुओं से दूध निकालनें के बाद उन्हें यदि संभव हो सके तो ठंडा पानी पिलाना चाहिये
·        गर्मी में ३-४ बार पशुओं को अवश्य ताजा ठंडा पानी पिलाना चहिये ।
·        भैंसों को गर्मी में ३-४ बार और गायों को कम से कम २ बार नहलाना चाहिये
Ø गाय , भैस की सहन की छत यदि एस्बेस्टस या कंक्रीट की है तो उसके ऊपर ४ -६ इंच मोटी घास फूस की तह लगा देने से पशुओं को गर्मी से काफ़ी आराम मिलाता है ।
Ø पशुओं को नियमित रूप  से खुरैरा करना चाहिय
Ø खाने –पीने की नांद को नियमित अंतराल पर चूना कली करते रहना चाहिये
Ø रसोई की जूठन  और बासी खाना पशुओं को कतई नहीं खिलाना चाहिये
Ø कार्बोहाइड्रेट की अधिकता वाले खाद्य पदार्थ जैसे: आटा,रोटी,चावल आदि पशुओं को नहीं खिलाना चाहिये
Ø पशुओं के संतुलित आहार में दाना एवं चारे का अनुपात ४० और ६० का रखना चहिये ।साथ ही व्यस्क पशुओं को रोजाना ५०-६० ग्राम खनिज मिश्रण  और २० ग्राम नमक तथा छोटे बच्चों को १०-१५ ग्राम खनिज मिश्रण जरूर देना चहिये ।
Ø गर्मियों के मौसम में पैदा की गयी ज्वार में जहरीला पदर्थ हो सकता है जो पशुओं के लिए हानिकारक होता है । अतः इस मौसम में यदि बारिश नहीं हुई है तो ज्वार खिलाने के पहले खेत  में २-३ बार पानी लगाने के बाद ही ज्वार चरी खिलाना चहिये ।
Ø पशुओं का इस मौसम में गलाघोंटू , खुरपका मुंहपका , लंगड़ी बुखार आदि बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण जरूर कराना चाहिये जिससे  वे आगे आने वाली बरसात में इन बीमारियों से बचे रहें

गर्मी के दौरान होने वाली पशुओं की कुछ प्रमुख बीमारियाँ :
·        लंगडी बुखार
·        सर्रा
·        सायनाइड विषाक्तता
·        चींचड़ी ज्वर
·        गो चेचक
·        थनैली
·        दुग्ध ज्वर

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