Saturday 16 February 2013

जैवकीय युद्ध एवं जैव आतंकवाद- डॉ. रमेश पाण्डेय,


जैवकीय युद्ध एवं जैव आतंकवाद
डॉ. रमेश पाण्डेय,
एसोशियेट प्रोफ़ेसर
सुंदरेसन पशुपालन एवं दुग्धविज्ञान विद्यालय ,
 सैम हिग्गिन्बाटम इन्स्टीट्यूट आफ़ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज
               ( पूर्ववर्ती इलाहाबाद कृषि संस्थान ) , 
                            मान्य विश्वविद्यालय,
                        नैनी, इलाहाबाद -211007

अंतर्वस्तु:
1.  जैवकीय युद्ध एवं जैव आतंकवाद : परिचय
2.  जैवकीय युद्ध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
3.  वैश्विक स्तर पर जैव आतंकवाद
4.  जैवकीय युद्ध एवं जैव आतंकवाद नियंत्रण  के वैश्विक प्रयत्न तथा उपाय
5.  भारतीय परिदृश्य में जैव आतंकवाद
6.  संक्षेपण
7.  सन्दर्भ



1.  जैवकीय युद्ध एवं जैव आतंकवाद : परिचय
जैवकीय युद्ध अथवा  जीवाणुज युद्ध एक ऐसी छद्म युद्धकीय  प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत मुख्यतः मनुष्यों ,कभी- कभी  पशुओं तथा यदा - कदा पौधों को भी एक योजनाबद्ध रूप से मृत्यु अथवा घातक रूप से अक्षम बना देने का कुप्रयास किया जाता है । जैवकीय हथियारों के लिये प्रायः ऐसे जैवकीय माध्यमों यथा : विषाणुओं अथवा जीवाणुओं का प्रयोग किया जाता है जो आक्रांता के रूप में लक्षित मनुष्यों, पशुओं तथा पौधों को की जीवन प्रणाली में प्रविष्ट होने के पश्चात  प्रथमतः अपनी संख्या में आशातीत वृद्धि तथा /अथवा परिवर्तन करते हैं  तथा तत्पश्चात संक्रमित मनुष्यों/पशुओं/पौधों की जीवन प्रणाली को गम्भीर आघात पहुंचा या तो उसे काल के गाल में पहुचा देते हैं अथवा उसे पंगु सा कर आजीवन दुःख पाने के लिये छोड़ देते हैं। कीट- पतंगों के माध्यम से किये जाने वाला छद्म युद्ध भी जैवकीय युद्ध के अंतर्गत ही आता है।
      आधुनिक काल में जैव आतंकवाद को ऐसी क्रूर गतिविधि के रूप में व्याख्यायित किया जाता है     जिसके अंतर्गत       अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विषाणुओं, जीवाणुओं तथा विषैले तत्वों को मानव द्वारा ही    प्राकृतिक अथवा परिवर्धित रूप में विकसित कर अपने लक्ष्य संधान हेतु किसी राष्ट्र के विरूद्ध      निर्दोष जन, पशुओं अथवा पौधों को  को गम्भीर    हानि पहुंचाने हेतु योजनाबद्ध रूप से   मध्यस्थ साधन  के रूप में दुरूपयोगित किया जाता है । दूसरे रूप में जैव       आतंकवाद उन       संबंधों को बताता है जिसमें अनियमित रूप से जैविक मध्यस्थों के रूप में घातक जीवाणुओं ,   विषाणुओं अथवा रसायनों के दुरुपयोग के द्वारा किसी राष्ट्र की सरकार या जनता को      राजनीतिक या सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु धमकाया जाता है । प्रायः मनुष्य , जंतु एवं    पादप समूह इसके लक्ष्य बनते हैं । सामान्य      आतंकवाद एवं जैव आतंकवाद में प्रमुख अंतर       आक्रमणोपरांत प्रभावित समूह के घायल होने में लगने वाले समय     में होता है जो जैविक कारकों के प्रकार, उनकी मारकता तथा उनकी संक्रमण अवधि पर निर्भर करता है जो   सामान्यतः 60 दिनों तक हो सकती है । वर्तमान समय में आत्मघाती जैव आतंकवाद की   समस्या भी सामने आ     रही है जिसमें आतंकवादी स्वयं को घातक रोगकारी संक्रमण से संक्रमित     करने के पश्चात सामान्यजन के मध्य जा  कर उन्हें भी संक्रमित कर देता है एवं अंततः स्वयं     भी मर कर पूरे क्षेत्र को विनाशक रोग से भर देता है।
2.जैवकीय युद्ध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
Ø  जैवकीय युद्ध के प्रयास के उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है।  ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में मेसोपोटामिया के अस्सूर साम्राज्य के लोगों ने शत्रुओं के पानी पीने के कुओं में एक विषाक्त कवक डाल दिया था जिससे शत्रुओं की मृत्यु हो जाये । इसी प्रकार ईसा पूर्व 184वीं सदी में विख्यात सेनापति हान्निबल नें मृदा पात्रों में सर्प विष भरवा कर प्राचीन ग्रीक नगर पर्ग्मान की गोदी में उपस्थित जलपोतों में फिंकवा दिया था
Ø  यूरोपीय मध्यवर्ती इतिहास में मंगोलों तथा तुर्की साम्राज्यों द्वारा संक्रमित पशु शरीरों को शत्रु राज्य के जल स्रोतों में डलवा कर संक्रमित करने के कई आख्यान मिलते हैं गिल्टी प्लेग  के महामारी के रूप में बहुचर्चित “ श्याम मृत्यु ” (Black Death) के फैलने का प्रमुख कारण मंगोलों तथा तुर्की सैनिकों द्वारा रोग पीड़ित मृत पशु शरीरों को समीपवर्ती नगरों में फेंका जाना बताया जाता है
Ø  जैवकीय युद्ध का एक ज्ञात पिछला उदहारण रूसी सैनिकों द्वारा ईसवी 1710 में स्वीडिश नगर की दीवारों प्लेग संक्रमित मृत पशु शरीरों के फेंके जाने के आख्यान द्वारा जाना जाता है
Ø  ईसवी 1763-67 के मध्य पोंटियाक युद्ध में चेचक के विषाणुओं से संक्रमित कम्बलों को ब्रिटिश सैनिकों द्वारा जैवकीय हथियार के रूप में विरोधी सैनिकों के विरूद्ध प्रयोग करने का उल्लेख मिलता है।संदेह किया जाता है कि ब्रिटिशों ने भारतीयों के विरूद्ध भी जैवकीय हथियारों का प्रयोग किया था परन्तु इसके स्पष्ट तथा प्रामाणिक आख्यानों का अभाव है।
Ø  जैवकीय हथियारों का विकसित रूप में प्रयोग जर्मन सैनिकों द्वारा प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) में एंथ्रेक्स तथा ग्लैंडर्स के जीवाणुओं द्वारा किया गया था।इस प्रकार के जैवकीय हथियारों के प्रयोग पर जेनेवा संधि द्वारा ईसवी 1925 में रोक लगा दी गयी थी जिसके प्रतिबंध क्षेत्र का विस्तार सन् 1972 में जैवकीय तथा विषाक्त शष्त्र सम्मलेन के माध्यम से किया गया ।
Ø  जापान- चीन युद्ध(1937-1945) तथा द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) में शाही जापानी फ़ौज की विशिष्ट शोध इकाई ( इकाई संख्या 731) नें चीनी नागरिकों तथा सैनिकों पर जैवकीय हथियारों के प्रयोग किये जो बहुत प्रभावशाली नहीं सिद्ध हो पाए परन्तु नवीन अनुमानों के अनुसार लगभग 5,80,000 सामान्य नागरिक, प्लेग संक्रमित खाद्य पदार्थों के जाने- बूझे प्रयोगके द्वारा प्लेग तथा हैजा से पीड़ित हुए थे
Ø  नाजी जर्मनों के जैवकीय हथियारों के संभावित खतरे का प्रत्युत्तर देने के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त ब्रिटेन तथा कनाडा नें सन् 1941 में जैवकीय हथियार विकास करने के संयुक्त कार्यक्रम पर एक साथ कार्य किया तथा एंथ्रेक्स, ब्रूसेल्लोसिस तथा बोटुलिज्म् के विषैले जैव हथियार तैयार किये परन्तु बाद में यह संभावित भय की  एक अतिरंजित प्रतिक्रिया ही सिद्ध हुई।
Ø  हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले एंथ्रेक्स के बीजाणुओं का उद्गम गलती से 1979 में स्वर्दर्लोव्स्क नामक एक सोवियत बंद शहर के पास एक सैन्य केंद्र से हुआ था स्वर्दर्लोव्स्क एंथ्रेक्स रिसाव को कभी-कभी "जैविक चेर्नोबिल" भी कहा जाता है
Ø  संभवतः 1980 के दशक के अंतिम दौर में चीन के एक जैविक हथियार संयंत्र में गंभीर दुर्घटना हुई थी । सोवियत संघ का संदेह था कि 1980 के दशक के अंतिम दौर में चीनी वैज्ञानिकों द्वारा विषाणुजनित रोगों को हथियार का रूप दिए जानें के प्रयास के समय तत्संबंधित प्रयोगशाला में एक दुर्घटना की वजह से क्षेत्र में रक्तस्रावी बुखार की दो अलग-अलग महामारियों का प्रसार हुआ था ।
Ø  जनवरी 2009 में, अल्जीरिया में में प्लेग से अल-कायदा के एक प्रशिक्षण शिविर का सफाया हो गया जिसमें लगभग 40 अतिवादियों की मौत हुई थी विशेषज्ञों ने कहा कि यह दल जैविक हथियार विकसित कर रहा था
3.वैश्विक स्तर पर जैव आतंकवाद:
Ø  सन् 1972 में शिकागो पुलिस ने एलेन स्क्वान्डर तथा स्टीफ़ेन पेरा नाम के दो विद्यार्थियों को गिरफ़्तार किया जो नगर की जल आपूर्ति प्रणाली को टायफाइड  तथा अन्यान्य रोगों के जीवाणुओं से संक्रमित करने की योजना बना रहे थे। एलेन स्क्वान्डर नें एक आतंकवादी समूह “आर. आई. एस. इ.(R.I.S.E.)” बनाया था जबकि स्टीफ़ेन पेरा ने जैव कल्चर विकसित करने के लिये उस  अस्पताल का उपयोग किया था जिसमें वह काम  किया करता था ।
Ø  सन् 1993 में “अउम शिनरिक्यो” नामक धार्मिक समूह नें जापान के टोक्यो नगर में एंथ्रेक्स जीवाणुओं को फैला दिया। घटना के साक्षी लोगों नें वातावरण में एक दुर्गन्ध फैलने की शिकायत की थी । सौभाग्य यह था कि इस घटना से कोई भी व्यक्ति हताहत नही हुआ क्योंकि इस समूह नें बैक्टीरियम के टीके के स्ट्रेन का प्रयोग किया था जिसमें लक्षण अभिव्यक्ति हेतु आवश्यक जीन का अभाव था ।
Ø  सन् 2001 के सितम्बर तथा अक्टूबर महीने  में संयुक्त राज्य अमेरिका में एंथ्रेक्स के आक्रमण के कई मामले सामने आये थे जिसमें आतंकवादियों नें बहुतेरे एंथ्रेक्स संक्रमित पत्र संचार माध्यमों तथा अमेरिकी कांग्रेस के कार्यालयों में भेजे जिसके कारण पाँच व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी ।इस दुखद घटना नें राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जैव सुरक्षा तथा जैव आक्रमण से बचाव के उपाय विकसित करने की आवश्यकता को पर्याप्त बल प्रदान किया ।
4.जैवकीय युद्ध एवं जैव आतंकवाद नियंत्रण के वैश्विक प्रयत्न तथा उपाय:
जैवकीय युद्ध एवं जैव आतंकवाद नियंत्रण  के वैश्विक प्रयत्न
Ø  अमेरिका में जैवकीय हथियार विकसित  करने की होड़ पर सार्थक रोक  लगने का महत्वपूर्ण कार्य सन्  1969 में तात्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड एम् निक्सन ने किया जिसके अंतर्गत उन्होंने सन् 1942 से अमेरिका में चल रहे जैवकीय हथियार विकास  कार्यक्रम पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया । 25 नवंबर,1969 को व्हाइट हाउस में प्रेस संगोष्ठी को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि “जैवकीय हथियारों में अकल्पनीय तथा भारी जन संहारक क्षमता है जिसे नियंत्रित कर सकना सम्भव नहीं है । ये जैवकीय हथियार वैश्विक महामारियों के कारण तथा भविष्य की संततियों के स्वास्थ्य हेतु अत्यंत घातक सिद्ध हो सकते हैं । इन संभावित खतरों के सन्दर्भ में संयुक्त राज्य अमेरिका अपने समस्त जैवकीय मध्यस्थ कारकों को नष्ट कर देगा तथा अपने  जैवकीय शोध कार्यक्रम का प्रयोग रक्षात्मक उपायों यथा टीका विकसित करनें आदि में करेगा।“
Ø  10 अप्रैल,1972 को अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड एम् निक्सन के प्रबल प्रयत्नों के कारण वाशिन्गटन, लन्दन तथा मास्को में जैवकीय हथियारों के विकास , उत्पादन तथा संग्रहण पर प्रतिबन्ध तथा विषाक्त हथियारों को नष्ट करने पर सामुदायिक / सामूहिक सहमति के आधार पर हस्ताक्षर किये गये जिसने वैश्विक स्तर पर जैवकीय युद्ध की सम्भावना को न्यूनतम करने की दिशा में महत्वपूर्ण पीठिका सृजित की ।
जैवकीय युद्ध एवं जैव आतंकवाद नियंत्रण  के वैश्विक उपाय:
Ø  योजनाबद्ध रूप से त्वरित जैवकीय संक्रमण पहचान प्रणाली का विकास :
·         समुचित योजना निर्माण तथा उसके समयबद्ध अनुपालन के द्वारा भविष्य में संभावित किसी भी जैवकीय खतरे की समय रहते पहचान कर पाना तथा आवश्यक निरोधी तथा उपचारात्मक उपायों को अपना कर जन हानि को रोका जा सकता है। इस दिशा में संयुक्त राज्य अमेरिका तथा अन्य अनेक विकसित तथा कुछ विकासशील  देशों की प्रयोगशालाओं में अग्रिम सूचना प्रणाली विकसित करने, अधिक जोखिम वाले स्थानों की पहचान करनें तथा अविलम्ब चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध करने की दिशा में गंभीरतापूर्वक कार्य किया जा रहा है।
Ø  सतर्क तथा सघन जैव निगरानी व्यवस्था का विकास :
·         सन् 1999 में पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय के  जैव चिकिसकीय केन्द्र नें सर्वप्रथम स्वचालित जैवआतंकी निगरानी प्रणाली विकसित करनें की दिशा में कार्य प्रारम्भ किया तथा उसका नाम (RODS :रियल टाइम आउटब्रेक डिजीज़ सर्विलेंस ) रखा।इस दिशा में 5 फरवरी 2003 को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने इस केन्द्र में अपने भ्रमण के पश्चात 300 दसलक्ष डालर की सहायता प्रदान कर महत्वपूर्ण योगदान किया।
·         यूरोप में भी क्षेत्रवार रोग निगरानी प्रणाली विकसित करनें की दिशा में में कार्य किया जा रहा है जो कि जैवकीय आकस्मिकता को समयान्तर्गत आंकलित कर सके।इस प्रणाली के माध्यम से न केवल संक्रमित व्यक्तियों की संख्या ही आंकलित की जा सकती है अपितु रोग संचारी केन्द्र का भी सटीक अनुमान भी लगाया जा सकता है ।
·         जीवाणुज विषाक्तता का सटीक अनुमान लगने के लिये ऐसी वैद्युतीय चिप्स विकसित करने की दिशा में कार्य किया जा रहा है जिसमें संवेदी कोशिकायें सन्निहित हों ।इसी प्रकार फाइबर- ऑप्टिक रेखाओं की सहायता से प्रकाश प्रद्दीति अणुओं से संतृप्त प्रतिपिण्ड विकसित करने की दिशा में भी कार्य किया जा रहा है ।
·         पराबैंगनी हिमस्खलन फोटोडियोड्स की सहायता से ऐसी विश्वसनीय ,अति संवेदी तथा प्रभावशाली निगरानी व्यवस्था विकसित करने में सहायता प्राप्त हो रही है जो एंथ्रेक्स तथा अन्य जैव आतंकी कारकों की उपस्थिति को हवा में ही पहचान सकेगी ।इसी क्रम में तन्तुकारी विधियों तथा संयंत्र वैशष्टिकरण विकास का विस्तृत उल्लेख सांता बरबरा में हुई 50वीं अंतर्राष्ट्रीय वैद्युतीय संगोष्ठी में 25 जून को  भी किया गया ।
·         संयुक्त राज्य अमेरिका का रक्षा मंत्रालय अपनी कई योजनाओं के द्वारा वैश्विक संक्रामक रोग निगरानी प्रणाली विकसित करनें की दिशा में गम्भीर रूप से प्रयासरत है ।
Ø  जैव आतंकवादी दुर्घटना घटित होने पर समीचीन त्वरित प्रतिक्रिया :
·         जैव आतंकवाद के बढ़ाते हुए संभावित खतरे के परिदृश्य में सरकारी तंत्र द्वारा सशक्त तथा प्रभावशाली कानून बनाने व उसका प्रयोग करने की दृढ इच्छाशक्ति तथा घातक जैव हथियारों के संक्रमण को न्यूनतम रूप कर सकने में सक्षम आकस्मिक चिकित्सा इकाई को क्रियाशील  करने की आवश्यकता है। इस दिशा में संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना में कई ऐसी सैन्य इकाइयाँ क्रियाशील हैं जिनमें से मुख्य यू.एस. मैरीन कोर्प्स केमिकल बायोलॉजिकल इंसिडेंट रिस्पांस फ़ोर्स तथा यू.एस. आर्मीज़ 20वीं सपोर्ट कमांड (सी. बी.आर.एन.ई.) है जो जैव आतंकवादी हमले को पहचाननें , उदासीन करनें तथा जैव आक्रमण कारकों को अक्रिय कर सकनें में सक्षम हैं ।
5. भारतीय परिदृश्य में जैव आतंकवाद:
http://www.hindu.com/thehindu/op/hindux.gif
Online edition of India's National Newspaper
        Tuesday, Apr 20, 2004
      Inadvertent bio-terrorism on developing countries
Oneindia hindi

जैव आतंकवाद का खतरा: सरकार

        Published: Saturday, August 23, 2008, 11:48 [IST]
       नई दिल्ली, 23 अगस्तः मानव निर्मित और प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ते खतरों के बीच सरकार ने जैव   आतंकवाद के प्रति आगाह करते हुए इससे निपटने के लिए केन्द्र और राज्यों में बेहतर समन्वय की       ज़रूरत बताई।
       जैविक आपदा प्रबंधन से संबंधित राष्ट्रीय दिशा निर्देशिका जारी करने के अवसर पर केन्द्रीय गृहमंत्री      शिवराज        पाटिल ने आतंकवादियों द्वारा जैविक हथियार इस्तेमाल कर सकने की आशंका के      प्रति सतर्क रहने को कहा।
       जैविक आपदाओं के जंगल की आग जैसी तेजी से फैल सकने की चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा जैव      प्रौद्योगिकी का उपयोग मानव जाति को नुकसान पंहुचान के लिए किया जा सकता है और एक        विनाशकारी      हथियार के रूप में इसका इस्मेमाल हो सकता है।
       उन्होंने कहा जैविक आपदाओं से निपटने के लिए केन्द्र और राज्यों के बीच उचित सहयोग होना   चाहिए लेकिन अगर इसका प्रभावी ढंग से सामना करना है तो जिलों तथा स्थानीय निकायों के बीच       समन्वय       और भी        आवश्यक है।
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17/12/2010   पीएचडी डिग्रीधारकों को आतंकी बनाने की मुहिम जैव आतंकवाद का खतरा:
नई दिल्ली. भारत में तबाही फैलाने की साजिश में जुटे आतंकवादी संगठन हमले के लिए नए-नए तरीके इजाद कर रहे हैं। खुफिया एजेंसियों को मिल रही जानकारी के मुताबिक जिहादी संगठन जैव आतंकवाद की धारणा पर काम कर रहे हैं।गोपनीय जानकारी सार्वजनिक  करने वाली वेबसाइट विकीलीक्स के ताजा खुलासे में यह बात सामने आई है। विकीलीक्स के मुताबिक जिहादी संगठन जैव आतंकवाद के जरिये दहशत फैलाने के लिए विज्ञान की पृष्ठभूमि वाले तेज-तर्रार छात्रों को अपने गुट में शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं। आतंकियों की कोशिश है कि ऐसे हमलों की योजना तैयार करने के लिए जीव विज्ञान या बायो टेक्नोलॉजी में पीएचडी डिग्रीधारकों को शामिल किया जाए।
विकिलीक्स खुलासा : भारत बन सकता है जैविक आतंकी हमले का निशाना
      शुक्रवार, दिसंबर 17, 2010, 15:00 [IST] 
      लंदन, 17 दिसम्बर (आईएएनएस)। विकिलीक्स द्वारा जारी गोपनीय राजनयिक संदेशों के   अनुसार अमेरिकी राजनयिक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि भारत जैविक आतंकी   हमले का निशाना बन सकता है। इसके तहत एंथ्रेक्स जैसी घातक बीमारियों को भारत में   फैलाया       जा सकता है और उसके बाद वे बीमारियां पूरी दुनिया में फैल सकती हैं।
      समाचार पत्र 'गार्जियन' में शुक्रवार को प्रकाशित रपट के अनुसार कि गोपनीय संदेशों से     इस    बात का खुलासा हुआ है कि एक वरिष्ठ भारतीय राजनयिक ने अमेरिका को 2006   में     बताया था कि जैविक हथियारों की चिंताएं ज्यादा दिनों तक सैद्धांतिक नहीं रहने वाली    हैं।    भारतीय राजनयिक ने कहा था कि खुफिया सूत्रों ने जानकारी दी है कि आतंकी   संगठन जैविक युद्ध के बारे में गहन चर्चा कर रहे हैं।


भारत में जैव आतंकवाद फैलाएगा अलकायदा
      AMN News [ Posted On Fri 17 Dec 10, 8 : 35 PM]
      नई दिल्ली, आतंकी संगठन अलकायदा के निशाने पर भारत भी है। वह जैव आतंकवाद के जरिए    भारत में       दहशत फैलाने की तैयारी में है। इसके तहत एंथ्रेक्स जैसी घातक बीमारियों को      भारत में फैलाया जा सकता       है और उसके बाद यह बीमारी पूरी दुनिया में फैल सकती है। स्वीडिश वेबसाइट विकिलीक्स ने यह       रहस्योद्घाटन किया है। मई 2006 के खुफिया केबिल के    अनुसार विदेश विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त       सचिव केसी सिंह ने कहा था कि अलकायदा भारत पर जैविक हमला करने की फिराक में है। उन्होंने उस वक्त अलकायदा के दूसरे नंबर     के नेता अयमान अल जवाहिरी के एक वीडियो का जिक्र करते हुए यह      आशंका व्यक्त की थी।       जवाहिरी ने उस वीडियो में कश्मीर में भारतीयों के खिलाफ जिहादी गतिविधियों की प्रशंसा की थी। केबल के अनुसार भारत के जिहादी संगठन देश में जैविक आतंकवाद फैलाना चाहते हैं। इसके लिए वो जीवविज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी में पीएचडी और आतंकी विचारधारा वाले लोगों की तलाश     कर रहे है।
      जैव आतंकवाद की दस्तक
        Nov 01, 2011, 11:42 pm: दैनिक जागरण
        अमेरिका से आयातित सेब में सौ से भी अधिक कीट तथा बीमारियां पाए जाने से साफ हो गया है कि    भारत   में जैव आतंकवाद ने दस्तक दे दी है। मतलब साफ है कि हमारे सामने एक नए आतंकवाद का खतरा   उपस्थित है जो खाद्य आपूर्ति की कड़ी को प्रभावित करने जा रहा है। अमेरिका के कृषि विभाग      द्वारा   किए गए खंडन अपनी जगह हैं, लेकिन यथार्थ यह है कि इंग्लैंड में राष्ट्रकुल अंतरराष्ट्रीय कृषि        ब्यूरो ने        अमेरिका के सेबों में 184 कीटों की पहचान की है, जिनमें से 94 कीटों का भारत के संदर्भ में       महत्व है। सरल शब्दों में कहें तो अमेरिका से सेब के आयात की प्रत्येक खेप भारत में 94 ऐसे कीट     ला रही है, जिनका यहां अब तक कोई अस्तित्व नहीं मिला था। ये खतरनाक रोग और कीट भारत   में फलों और खाद्य पदार्थों की श्रृंखला को संक्रमित करने की क्षमता रखते हैं, जिससे फल उगाने वाले   किसानों और व्यापारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। आने वाले समय में इन कीटों व रोगों       से बचाव के लिए भारत को करोड़ों रुपए खर्च करने पड़ेंगे।

Threat of bio terrorism: India building its first bio-radar

21st June 2012 09:34 AM
India has started building its one of the first bio-radars as the threat of bio-terrorism looms large over the country. It is conceived to act as an early warning system.
The Defence Bioengineering and Electromedical Laboratory (DEBEL) will be attempting to make a bio-radar with the help of nano technology as indicated by the Scientific Adviser to the Defence Minister and Director General of the Defence Research and Development Organisation (DRDO) V K Saraswat.
He said that their R&D efforts would try to build this product to avert a biological or chemical attack. Elaborating further, DEBEL’s Director V Padaki said the components of the bio-radar would detect the existence of any quarantine material and communicate it to the control room. This, he said, would give an indication of the quarantine material and also prepare to counter a biological or chemical attack.
He also said that they were using nanocensors as nano gave a far better surface area than a conventional censor.  Highlighting DEBEL’s area of focus, he said that the laboratory was nearing completion of the Integrated Life Support System (ILSS), a part of the  Onboard Oxygen Generation System developed for the Light Combat Aircraft (LCA-Tejas). He said that it would help in providing higher flight endurance for the soon to be inducted aircraft.
Speaking on other variant  of Tejas, the LCA -Navy, which is currently undergoing trials here, Saraswat said that the aircraft would be headed to Goa for shore trials and ski-jump trials by December this year. He said that they would asses the data from its first 5-7 flights and constantly upgrade their levels of functioning to optimum efficiency.
On the Airborne Early Warning and Control (AWAC) Systems, he said that the first of the Embraer from Brazil would land in India by July this year. “All the radar arrays and building blocks for this have been realised,” he said and pointed out that the programme was going according to schedule.
He said that they would try to get the system ready by January 26, 2013.
Aug. 12, 12:39 am: दैनिक जागरण
जैव आतंकवाद से मिलकर लड़ेंगे भारत-अमेरिका
       ग्वालियर निज संवाददाता।
       भारत और अमेरिका ने जैव व रसायनिक आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने का निर्णय लिया है।
       रक्षा अनुसंधान विकास एवं स्थापना (डीआरडीई) और अमेरिकी डीटीआरए (डिफेंस, थ्रेट रिडेक्शन एजेंसी) के वैज्ञानिक इस दिशा में मिलकर काम करेंगे। डीटीआरए के प्रमुख डॉ. एलन रुडौल्फ का कहना है कि प्रत्यक्ष     रूप से जैव या रसायनिक युद्ध संभव नहीं है, लेकिन जिस तरह से पूरे विश्व में आतंकी घटनाएं बढ़ रही   हैं,     उसके चलते आतंकी जैविक हथियारों का उपयोग कर सकते हैं। इस समय भारत और अमेरिका       दोनों ही        देशों पर आतंकवाद का साया ज्यादा मंडरा रहा है और दोनों देशों की सुरक्षा चिंताएं भी एक जैसी    हैं,     इसलिए रोकथाम के उपाय करना जरूरी है। तीन दिन तक ग्वालियर में जुटे दोनों देशों के रक्षा   वैज्ञानिकों        ने एक ऐसे सिस्टम पर काम करने पर बल दिया, जिसमें जैविक हमले होने से पहले   उसे पहचान लिया       जाए और उसे रोकने के साथ उसका प्रभाव सीमित करने की दिशा में काम हो।      हालांकि अब जैविक व    रसायनिक हथियारों के हमले से निपटने के लिए दवाएं व अन्य उपाय मौजूद हैं,    लेकिन सतर्क रहने की    बहुत आवश्यकता है। जैविक हथियारों में आतंकियों का प्रिय हथियार है, एंथ्रेक्स      के एजेंटों को पानी से    लेकर ऐसे माध्यमों में प्रवेश करा देना, जिनका संबंध सीधे जनता से हो।

     
6.संक्षेपण :
वस्तुतः जैवकीय युद्ध  तथा जैव आतंकवाद नामक दोनों क्रूर गतिविधियाँ  मानवता के कुछ ऐसे दम्भी , संवेदनाविहीन शाषकों/राष्ट्रों ,संगठनों तथा /अथवा व्यक्तियों की देन है जो अपनी वैयक्तिक  हठधर्मिता के कारण अपनी समस्त ऊर्जा , प्रतिभा तथा संसाधनों को अपने ही निर्दोष माता-पिता ,भाई – बहन , पुत्र- पुत्रियों , सगे – सम्बन्धियों, पशु –पौधों तथा शरण प्रदाता पृथ्वी को घातक तथा दीर्घकालिक क्षति पहुँचाने में प्रयुक्त करते हैं । यदि इस विक्षिप्ततापूर्ण कुकृत्य के विरूद्ध समष्टि के समस्त प्रबुद्ध तथा संवेदनशील मनुष्य व राष्ट्रएकमत तथा एकजुट हो कर समयान्तर्गत गम्भीर प्रयत्न करें तो इसमें कोई संशय नहीं है कि इस जैवकीय युद्ध /जैव आतंकवाद के भष्मासुर का स्वप्न दिवास्वप्न बन कर रह जायेगा तथा वह स्वयं अंततः अधोगति को प्राप्त कर नष्ट हो जायेगा ।
7.सन्दर्भ:
Ø  "Weapons of Mass Destruction", New York Times Magazine, 19 April 1998, p.22.
Ø  Chemical and Biological Weapons: Use in Warfare, Impact on Society and Environment (http:/ / www.wagingpeace. org/ articles/ 2001)
Ø  Bioterrorism Overview. Centers for Disease Control and Prevention, 2008-02-12
Ø  Tucker, Jonathan B. and Mahan, Erin R., President Nixon’s Decision to Renounce the U.S. Offensive Biological Weapons Program, National Defense University Press, Washington,D.C.,October,2009
Ø  Block, Steven M. (2001), “The growing threat of biological weapons” , American Scientist (American Scientist) 89:1: 28
Ø  Christopher, G. W.; et al. (1998), Adapted from Biological Warfare: A Historical Perspective, Fort Detrick, Maryland: Operational Medicine Division
Ø  Eitzen, E.; Takafuji, E. (1997), "Historical Overview of Biological Warfare", Military Medicine: Medical Aspects of Chemical and Biological Warfare, Office of the Surgeon General, Department of the Army.
Ø  विश्वमारी.www.hi.wikipedia.org
Ø  विश्वमारी चेतावनी के वर्तमान डब्ल्यू एच ओ चरण.WHO.2009
Ø  www.keepintouchnews.com
Ø  http://news.oneindia.in
Ø  http://www.bt.cdc.gov/bioterrorism/overview

बर्ड फ़्लू: डॉ. रमेश पाण्डेय


बर्ड फ़्लू:
मनुष्यों की तरह ही पक्षी भी फ्लू के शिकार होते हैं। बर्ड फ्लू को एवियन फ्लू, एवियन इंफ्लूएंजा के नाम से भी जाना जाता है। इसका एच-5 एन-1 वायरस पक्षियों के साथ ही मुर्गियों और बत्तखों को भी अपना शिकार बनाता है। बर्ड फ्लू के अधिकतर विषाणु केवल दूसरे पक्षियों को ही अपना निशाना बना सकते हैं, पर यह मनुष्यों के स्वास्थ्य पर भी विषम प्रभाव डाल सकता है। एच-5 एन-1 विषाणु से किसी आदमी के संक्रमित होने का पहला मामला हांगकांग में 1997 में सामने आया था। उसी समय से ही एशिया, अफ्रीका और यूरोप के देशों में बर्ड फ्लू का विषाणु फैलने लगा।

यह घातक विषाणु एच-5 एन-1 भारत में जनवरी में फैला था। खाद्य और कृषि संगठनों के अनुसार देश भर में इसके फैलाव को रोकने के लिए 30 लाख 90 हजार से अधिक मुर्गियों और बत्तखों को मार दिया गया। 2 फरवरी 2008 के बाद से किसी नयी बीमारी के निशान देखने को नहीं मिले हैं। एवियन एंफ्लूएंजा आमतौर पर पक्षियों को ही अपना निशाना बनाता है, पर इसके एच-5 एन-1 विषाणु ने एशिया में अपनी शुरुआत (2003) के समय से ही लगभग 243 लोगों को अपना शिकार बना लिया है। यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) का है।
  1. मुरगाबी एच-5 एन-1 विषाणु को अपने साथ लाते हैं।
  2. मुर्गियां इनका सबसे आसान शिकार बन सकती हैं।
  3. वे इससे मानवों को संक्रमित कर सकती हैं, जो सबसे निकट संपर्क में रहते हैं।
बाघ, बिल्ली (एच5एन1), सील (एच7एन7), पशु, अश्व प्रजाति (एच7एन7), नेवला (एच10एन4,एच1एन2,एच3एन2,एच4एन6,एच5एन1), मानव, सूअर (एच1एन1), व्हेल (एच2एन2, एच13एन9), मानव
मूल धारक- जंगली मुरगाबी, बत्तख आदि (एच1-15, एन1-9)
बर्ड फ्लू के फैलने के मामले में जो लोग संक्रमित पक्षियों के संपर्क में रहते हैं, इसका शिकार बन सकते हैं। मुर्गी अगर सही ढंग से नहीं पकी हो, तो उसे खानेवाला भी बीमार हो सकता है या फिर किसी ऐसे आदमी के संपर्क से भी यह बीमारी फैलती है, जो पहले से इसका शिकार हो। बर्ड फ्लू आदमी को बेहद बीमार कर सकता है, यहां तक कि मौत का कारण भी बन सकता है। फिलहाल अभी इसका कोई टीका नहीं है